शीर्षक-एक डोर में सबको जो है बांधती
दिल से दिल तक, अपनापन बिखराती है
सब के उर में, ज्ञान-कमल निखराती है।।
प्रेम-भाव व उन्नति की कालिंदी है।
एक डोर में सबको जो है बांधती,
वह हिंदी है।।
अक्षर-अक्षर, आदिकाल का गौरव शामिल
शब्द-शब्द है बसा हुआ, रस-वैभव काबिल।।
कवियों के यश-गरिमा की बिंदी है।
एक डोर में सबको जो है बांधती,
वह हिंदी है।।
जन-जन की वाणी में, सहज समाहित है
रग-रग में उनके, ये सतत प्रवाहित है।।
ऐसे सब को प्रिय, ज्यों शिव को नंदी है।
एक डोर में सबको जो है बांधती,
वह हिंदी है।।
#आधे-अधूरे/प्रसिद्ध पंक्तियाँ प्रतियोगिता
----विचार एवं शब्द-सृजन----
----By---
---पूजा यादव----
---स्वलिखित एवं मौलिक रचना---
Punam verma
26-Jul-2023 05:14 PM
Very nice
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